उपन्यास >> पानी बीच मीन पियासी पानी बीच मीन पियासीमिथिलेश्वर
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प्रख्यात कथाकार मिथिलेश्वर का आत्मकथ्यात्मक उपन्यास ...
प्रख्यात कथाकार मिथिलेश्वर का आत्मकथ्यात्मक
उपन्यास है–‘पानी बीच मीन पियासी’, जो उनके समय और समाज का
जीवन्त दस्तावेज़ है। ज़मीन से जुड़ा कोई संघर्षशील व्यक्ति विभिन्न
समस्याओं से जूझते हुए कैसे रचनात्मकता ग्रहण करता है तथा संवेदना के
धरातल पर अपनी रचना-प्रक्रिया में असंगतियों के ख़िलाफ़ आलोचनात्मक विवेक
जाग्रत करने की कोशिश करता है, इसका सशक्त आख्यान है यह कृति। सचमुच किसी व्यक्ति का यथार्थ जीवन किसी भी काल्पनिक रचना से अधिक मर्मस्पर्शी,
विचारोत्तेजक और प्रभावकारी होता है, यह कृति इस बात का भी पुख्ता प्रमाण
है।
एक लेखक के जीवन संघर्षों के तहत आज़ादी के बाद के गाँवों की बेबाक अन्तःकथा प्रस्तुत करनेवाली इस कृति में जातिगत द्वेष, खेती के कठिन और जटिल संघर्ष, लिंग-भेद आदि निरन्तर विस्तार पाती अराजक स्थितियाँ मन को आहत करती हैं। बावजूद इसके अभावों से जूझते हुए ग्रामीणों का अस्तित्व-रक्षा के लिए प्रखर संघर्ष, और फिर गाँव से टूटने और जुदा होने की पीड़ा तो दर्ज है ही, साथ ही शहरी समाज में मध्यवर्गीय जीवन की तल्ख़ सच्चाइयों का खाका भी इस कृति को अहम बनाता है।
ऐसी समस्याओं का साहित्य में समाधान ढूँढ़ने की पुरज़ोर लेखकीय कोशिश अपना प्रस्थान निर्मित करती है। स्वप्नों के ध्वंस की त्रासदी और स्वप्नों के मलबे से सार्थक स्वप्नों की पुनर्निर्मिति ही इस आत्मकथ्यात्मक उपन्यास को ‘स्वप्नों के महाकाव्यात्मक आख्यान’ में तब्दील करती है। जीवन्त आंचलिक भाषा और ज़मीनी स्पर्श इस कृति की अन्यतम विशेषताएँ हैं।
एक लेखक के जीवन संघर्षों के तहत आज़ादी के बाद के गाँवों की बेबाक अन्तःकथा प्रस्तुत करनेवाली इस कृति में जातिगत द्वेष, खेती के कठिन और जटिल संघर्ष, लिंग-भेद आदि निरन्तर विस्तार पाती अराजक स्थितियाँ मन को आहत करती हैं। बावजूद इसके अभावों से जूझते हुए ग्रामीणों का अस्तित्व-रक्षा के लिए प्रखर संघर्ष, और फिर गाँव से टूटने और जुदा होने की पीड़ा तो दर्ज है ही, साथ ही शहरी समाज में मध्यवर्गीय जीवन की तल्ख़ सच्चाइयों का खाका भी इस कृति को अहम बनाता है।
ऐसी समस्याओं का साहित्य में समाधान ढूँढ़ने की पुरज़ोर लेखकीय कोशिश अपना प्रस्थान निर्मित करती है। स्वप्नों के ध्वंस की त्रासदी और स्वप्नों के मलबे से सार्थक स्वप्नों की पुनर्निर्मिति ही इस आत्मकथ्यात्मक उपन्यास को ‘स्वप्नों के महाकाव्यात्मक आख्यान’ में तब्दील करती है। जीवन्त आंचलिक भाषा और ज़मीनी स्पर्श इस कृति की अन्यतम विशेषताएँ हैं।
मिथिलेश्वर
जन्म : 31 दिसम्बर, 1950, भोजपुर (बिहार)।
शिक्षा : हिन्दी साहित्य में एम.ए. एवं पी-एच.डी.।
प्रमुख कृतियाँ : ‘बाबूजी’, ‘बन्द रास्तों के बीच’, ‘दूसरा महाभारत’, ‘मेघना का निर्णय’, ‘तिरिया जनम’, ‘हरिहर काका’, ‘एक में अनेक’, ‘एक थे प्रो. बी. लाल’, ‘भोर होने से पहले’, ‘चल खुसरो घर आपने’, ‘जमुनी’ (कहानी संग्रह); ‘झुनिया’, ‘युद्धस्थल’, ‘प्रेंम न बाड़ी ऊपजै’, ‘यह अन्त नहीं’, ‘सुरंग में सुबह’, ‘माटी कहे कुम्हार से’ (उपन्यास); ‘साहित्य की सामाजिकता’ (आलोचना); ‘मेरी पहली रचना’, ‘भोजपुरी लोककथाएँ’ (संकलन); ‘उस रात की बात’, ‘गाँव के लोग’, ‘एक था पंकज’ (बाल साहित्य) आदि।
सम्पादन : ‘मित्र’ (साहित्यिक पत्रिका)।
पुरस्कार सम्मान : ‘अखिल भारतीय मुक्तिबोध पुरस्कार’ (1976), ‘सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार’ (1979), ‘यशपाल पुरस्कार’ (1981-82), ‘अमृत पुरस्कार’ (1983), ‘साहित्य मार्तंड पुरस्कार’ (2003-05) सहित देश की अन्यान्य संस्थाओं से पुरस्कृत और सम्मानित।
सम्प्रति : रीडर, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा (बिहार)।
सम्पर्क : महाराजा हाता, कतिरा, आरा-802301 (बिहार)
शिक्षा : हिन्दी साहित्य में एम.ए. एवं पी-एच.डी.।
प्रमुख कृतियाँ : ‘बाबूजी’, ‘बन्द रास्तों के बीच’, ‘दूसरा महाभारत’, ‘मेघना का निर्णय’, ‘तिरिया जनम’, ‘हरिहर काका’, ‘एक में अनेक’, ‘एक थे प्रो. बी. लाल’, ‘भोर होने से पहले’, ‘चल खुसरो घर आपने’, ‘जमुनी’ (कहानी संग्रह); ‘झुनिया’, ‘युद्धस्थल’, ‘प्रेंम न बाड़ी ऊपजै’, ‘यह अन्त नहीं’, ‘सुरंग में सुबह’, ‘माटी कहे कुम्हार से’ (उपन्यास); ‘साहित्य की सामाजिकता’ (आलोचना); ‘मेरी पहली रचना’, ‘भोजपुरी लोककथाएँ’ (संकलन); ‘उस रात की बात’, ‘गाँव के लोग’, ‘एक था पंकज’ (बाल साहित्य) आदि।
सम्पादन : ‘मित्र’ (साहित्यिक पत्रिका)।
पुरस्कार सम्मान : ‘अखिल भारतीय मुक्तिबोध पुरस्कार’ (1976), ‘सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार’ (1979), ‘यशपाल पुरस्कार’ (1981-82), ‘अमृत पुरस्कार’ (1983), ‘साहित्य मार्तंड पुरस्कार’ (2003-05) सहित देश की अन्यान्य संस्थाओं से पुरस्कृत और सम्मानित।
सम्प्रति : रीडर, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा (बिहार)।
सम्पर्क : महाराजा हाता, कतिरा, आरा-802301 (बिहार)
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